Thursday, April 2, 2009
वीर तुम बढे चलो
घिरे जब जब संकट के बादल,चतुर्दिकों में दिखे शत्रुदल
खुशियाँ हो जायें दृष्टि से ओझल ,
और न आये को मार्ग नजर ,
घबरा न तू उन पलों में भी ,
लगा ऐसी हुंकार की जिससे गरज बादलों की हो जाएनिर्बल ...
चिर दल तुम उस अम्बर को बनकर तुफानो से भी सबल
संशय न कर ! है तुझमे अपर भुज बल ...
घिरे जब जब .....||१||
दृढ़ निश्चय से बढो पथ पर ।
काट डालो तुम उन बाधाओं को जो डाले तुम्हारी राहों में खलल ,
घोर तम में भी चम् चम् चमके ।
कीर्ति तुम्हारी जग में ऐसे माथे पर बिषधर के चमके है मणि जैसे
घिरे जब जब ...........||२||
कर डाल सफाया एक एक का ।
बनकर जैसे चक्र सुदर्शन
पर्वत भी पाताल में झांके -२
कदम अगर पड़ जाए उनपर
घिरे जब जब .....||३||
ऐसी तुम्हारी चल हो जिससे
देनी पड़े मार्ग सरिताओं को भी
दुस्त्दलों का दालान करो ऐसे की
महाकाल भी सरमाये तुमसे
घिरे जब जब ....||४||
बढो आगे तुम उस गति से तीव्र गति की हद हो ख़तम जहाँ से।
नही असंभव इस दुनिया में कुछ भी ।
अगर तुम्हारी चाह हो , यद् रहे लेकिन बस इतना ॥
पले न अहंकार कभी भी मन में...
और राम रहें सदा तेरे दिल में ॥
तरणी कुमार
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