Thursday, April 2, 2009
मदमस्त बसंत
मधु ने किया मदपान बागों में कोयल ने कूक मारी शरद ओढ़कर पीले सरसों की चदरिया चढ़कर डोली में ली बिदाई , तरुअर तजकर चिर्वसन को ओढे तन पर नूतन चुनरिया , परिंदे होने लगे स्वदेश को रुखसत कोंपलों में कलियाँ मुस्करायी और तब जाने कब ......... चुपके चुपके छुपती छुपाती ॥ प्यारी बसंत ऋतू आई ... तरणी कुमार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment